हाथ, पैर और हडि्डयों के रोगों के लिए होम्योपैथिक उपचार
- Rakesh Kumar Pandey
- Aug 8, 2020
- 3 min read
हाथ, पैर और हडि्डयों के रोगों के लिए होम्योपैथिक उपचार
रुमेटाइड संधिशोथ
परिचय-
यह एक प्रकार की ज्वलनकारी स्थिति होती है जो जोड़ों को प्रभावित करती है। इन भागों में सूजन अपने आप आती रहती है लेकिन यदि यह लगातार बनी रहे तो उससे जोड़ पर क्षति पहुंचकर, उसमें कार्य करने की शक्ति नहीं रह जाती है। यह रोग पेशियों, फेफड़ों, हृदय, स्नायुओं, प्रतिरक्षा तन्त्र, जोड़ों और आंखों को प्रभावित कर सकता है।
कारण :-
यह प्रतिरक्षा से संबन्धित रोग है। इस रोग में शरीर की प्रतिरक्षातन्त्र स्वयं शरीर के विरुद्ध प्रतिक्रिया करने लग जाती है। यह रोग लगभग 20 से 40 वर्ष की स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा अधिक होता है। यह शिकायत अनुवंशकीय भी हो सकती है। मानसिक तनाव होने के कारण से भी यह रोग उत्पन्न हो सकता है।
लक्षण :-
यह रोग सबसे पहले जोड़ों पर होता है। शरीर के दोनों तरफ के जोड़ एक समय में मुख्य रूप से प्रभावित होते हैं। इस रोग के कारण जोड़ों में दर्द, कड़ापन तथा सूजन आ जाती है। दर्द विशेषकर सुबह उठने व चलने पर महसूस होता है। रोगी को थकान महसूस होती है, भूख भी नहीं लगती है तथा व्याकुलता भी रहती है, अवसाद रोग के साथ होने वाले लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं। इस रोग के कारण जोड़ों की हरकत घट जाती है, जोड़ नाजुक हो जाते हैं और उनमें विकृति पैदा हो जाती है। अन्य लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि रोग ने किस तन्त्र पर विशेषकर प्रभाव डाला है। इस रोग के कारण सांस लेने में रुकावट होने लगती है। फेफड़े भी रोग ग्रस्त हो जाते हैं। इस रोग का असर आंखों पर होने से आंखें लाल हो जाती हैं, उनमें से पानी आने लगता है, मांसपेशियों पर असर होने पर पेशियों में दर्द, स्नायुओं पर असर होने पर हाथों में सुन्नपन आ जाती है।
रुमेटाइड संधिशोथ होने पर क्या करें और क्या न करें :-
रोगी को कम प्रोटीन व कम वसा वाली शाकाहारी खुराक का सेवन करना चाहिए।
भोजन में अधिक मात्रा में सलाद व हल्की पकी हुई सब्जियों का सेवन कर सकते हैं।
इस रोग से पीड़ित रोगी को तनाव से बचना चाहिए।
रोगी को स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए विशेष उपाए अपनानी चाहिए।
पौष्टिक खुराक का सेवन करना चाहिए।
स्वास्थ्य नियमों का पालन करना चाहिए।
कच्चे फलों व सब्जियों का रस पीना रोगी के लिए लाभदायक है।
प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट तक पैदल चलना लाभदायक होता है।
लाल मांस, अम्लीय फल जैसे सन्तरा, नींबू, कॉफी, चाय तथा एल्कोहल आदि पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए।
दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।
सुबह के समय में उठने के बाद कुछ दूर तक पैदल चलना चाहिए।
हल्का गर्म पानी से स्नान करना चाहिए।
रोगी को विटामिन- ए, विटामिन- बी काम्पलेक्स, विटामिन- सी, ई का सेवन करना चाहिए तथा लवण, जस्ता और कैल्शियम युक्त पदार्थ भी खाना चाहिए।
यदि दर्द अधिक तेज हो तो आराम करना चाहिए और अपने शरीर को सक्रिय रखना चाहिए।
प्रतिदिन सुबह तथा शाम को व्यायाम करना चाहिए।
गर्म पानी की बोतल से रोग ग्रस्त भाग की सिंकाई करनी चाहिए।
इच्छा शक्ति को दृढ़ रखना चाहिए।
यदि जोड़ का दर्द व सूजन अधिक हो तो तुरन्त ही चिकित्सक से सलाह लेकर उपचार कराना चाहिए।
तनाव से मुक्त रहने के लिए योग तथा आसनों का सहारा लेना चाहिए।
यदि शरीर का वजन अधिक हो गया हो या अधिक मोटे हो तो उसे कम करने का प्रयास करना चाहिए।
इस रोग से यदि कमर तथा पैर अधिक प्रभावित हो तो भारी वस्तुए नहीं उठानी चाहिए।
कड़ी मेहनत वाले काम नहीं करना चाहिए।
रोग के होने पर रोगी को कभी भी हताश नहीं रहना चाहिए।
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