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बच्चों के रोगों के लिए होम्योपैथिक उपचार

  • Writer: Rakesh Kumar Pandey
    Rakesh Kumar Pandey
  • Jul 31, 2020
  • 2 min read

बच्चों के रोगों के लिए होम्योपैथिक उपचार


बच्चों का #जिगर रोग



बच्चों का जिगर रोग होने पर औषधियों का प्रयोग :-


जिगर रोगग्रस्त होने के कारण बार-बार बच्चे को बुखार आता है खासतौर पर बुखार रात के अंतिम समय में उत्पन्न होता है। इस तरह बार-बार बुखार उत्पन्न होने के कारण बच्चा कमजोर व पतला हो जाता है। जिगर में गड़बड़ी के कारण देखते-देखते जिगर बढ़ जाता है और कठोर हो जाता है। इसके बाद बच्चे को भूख नहीं लगती, पेट बढ़ जाता है, कब्ज रहती है या पतले दस्त आते हैं। बच्चे को दस्त सफेद, काला, आंव या खून मिला हुआ आता है। बच्चे को पीलिया का रोग हो जाता है और पूरा शरीर पीला हो जाता है। इस तरह के लक्षण पैदा होने का मुख्य कारण जिगर की खराबी है। ऐसे में बच्चे को ठीक करने के लिए बच्चे को कैल्के-आर्स औषधि की 30 शक्ति का सेवन कराएं। यदि जिगर की गड़बड़ी के साथ बच्चे को कब्ज रहती हो तो सल्फर औषधि की 30 शक्ति या कैल्के-कार्ब औषधि की 6 शक्ति देनी चाहिए। बार-बार पतले दस्त आने पर पोडोफाइलम औषधि की 6 शक्ति देना हितकारी होता है। जिगर फूल गया हो और कठोर हो गया हो तो मर्क-आयोड औषधि की 3 शक्ति या कैल्के-कार्ब की 6 शक्ति का उपयोग करें। पीलिया होने पर मर्क औषधि की 6 शक्ति का सेवन कराना चाहिए। मुंह में घाव होने पर नाइट्रिक-एसिड औषधि की 6 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए। जिगर रोगग्रस्त होने के साथ कश्टकारी खांसी उत्पन्न हो तो फास्फोरस औषधि की 6 शक्ति का उपयोग करना चाहिए। बच्चे में कमजोरी लाकर उत्पन्न होने वाले जिगर के रोग में आर्जेण्ट-नाई औषधि की 6 शक्ति का सेवन कराना लाभदायक होता है।

यदि बच्चे का जिगर का रोग पूर्णिमा और अमावस्या को बढ़ता है तो ऐसे लक्षणों में बच्चे को साइलिसिया औषधि की 6 या 200 शक्ति का सेवन कराना हितकारी होता है।

जिगर में सूजन होने पर आर्स औषधि की 6 शक्ति या एपिस औषधि की 3 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

जिगर के रोग में प्रयोग की जाने वाली औषधियों के अतिरिक्त रोग में अधिक लाभ के लिए बीच-बीच में सल्फर- 30, नक्स-वोमिका- 6 तथा ब्रायोनिया- 6 शक्ति की औषधियों का भी प्रयोग किया जाता है। इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और रोग में जल्दी लाभ मिलता है।


जिगर रोगग्रस्त होने पर विशेष सावधानी रखनी चाहिए। बच्चे को बाहरी दूध देना बंद कर दें तथा केवल पानी की बार्ली दें। दूध पिलाने वाली स्त्री को अम्ल का रोग हो या उसे दूध न होता हो तो बच्चे को बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा दूध पीने के लिए देना चाहिए। गाय के छोटे बछड़े का गोबर या पेशाब को गर्म करके बच्चे की छाती पर सेंक देने से लाभ होता है।

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