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छाती और फेफड़ों के रोगों के लिए होम्योपैथिक उपचार

  • Writer: Rakesh Kumar Pandey
    Rakesh Kumar Pandey
  • Jul 26, 2020
  • 4 min read


#छाती में #पानी भर जाना


परिचय-


गले की सांस की नली को ट्रैकिया कहा जाता है। यह दो भागों में बंट जाती है जिन्हे ब्रोंकाई कहा जाता है। यह दोनों ब्रोंकाई दो सांस की नलियां है जिनमें से एक दाएं फेफड़े और दूसरी बाएं फेफड़े में चली जाती है। अगर कोई व्यक्ति अचानक गर्म मौसम से ठण्डे मौसम में पहुंचता है तो अचानक इस बदलाव के कारण रोगी की सांस की नली में सूजन आ जाती है।


लक्षण-


सांस की नली में सूजन आने के लक्षणों में रोगी को हल्का-हल्का सा बुखार आता है, ठण्ड लगने लगती है, सूखी खांसी होती रहती है और सांस लेने में रुकावट होती है। अगर रोगी को इन लक्षणों के आधार पर सही उपचार या चिकित्सा न मिले तो उसकी यह सूजन बढ़कर फेफड़ों तक पहुंच जाती है जिसे न्युमोनिया कहा जाता है।


कारण-


किसी भी व्यक्ति की सांस की नली में सूजन आ जाने के कई कारण होते हैं जैसे व्यक्ति का बहुत ज्यादा मात्रा में धूम्रपान करना, धूल-मिट्टी की एलर्जी होने के कारण, कोयले की खान में या चक्की पर धातु का काम करने के कारण आदि।


सांस की नली में सूजन के रोग को दो भागों मे बांटा जा सकता है- शुरुआती अवस्था, न्युमोनिया, विकट अवस्था (डेस्पेरटे स्टेज)।


सांस नली की सूजन की शुरुआती अवस्था में विभिन्न औषधियों का प्रयोग-


1. ऐकोनाइट- अगर रोगी को ज्यादा ठण्डे मौसम में रहने के कारण सांस की नली में सूजन आ जाती है और यह सूजन अचानक ही हुई हो धीरे-धीरे करके नहीं। इसके अलावा रोगी को अपनी छाती जकड़ी हुई सी महसूस होती है, सूखी खांसी होती है, कफ कठोर सा आता है, खांसते समय दर्द होता है, बुखार हो जाता है और रोग रात के समय बढ़ जाता है। इस तरह रोग की शुरुआती अवस्था में ही रोगी को ऐकोनाइट औषधि की 6 या 30 शक्ति देना लाभकारी होता है।


2. फेरम-फॉस- सांस की नली में सूजन के रोगी को जब रोग की शुरुआती अवस्था में किसी प्रकार के लक्षण नजर नहीं आते जैसे उसे बेचैनी महसूस नहीं होती तो ऐकोनाइट औषधि दी जा सकती है। अगर जलन या किसी प्रकार के मानसिक लक्षण उत्पन्न नहीं होते तो बेलाडोना औषधि का सेवन उपयोगी रहता है। फेरम-फास इन दोनों औषधियों के बीच में दी जा सकने वाली औषधि है। इसके अलावा रोगी शरीर से काफी हष्ट-पुष्ट नज़र आता है लेकिन अन्दर से वह बहुत कमजोर होता है। रोगी को सांस लेने में परेशानी होती है, थोड़ी दूर पैदल चलते ही रोगी हांफने लगता है, रोगी को खांसी के साथ खून आने लगता है। इस प्रकार के लक्षणों में भी फेरम-फॉस औषधि की 3x मात्रा या 3 या 6 शक्ति दी जा सकती है।


3. बेलाडोना- रोगी को बहुत तेज सूखी खांसी होती है, बलगम काफी सख्त रूप में आता है लेकिन रोगी को खांसी के दौरे पड़ते रहते हैं। इसके अलावा रोगी की त्वचा गर्म होती है, रूखी हो जाती है लेकिन रोगी के शरीर का जो भाग कपड़े से ढका होता है वहां की त्वचा नम होती है। अगर रोगी को प्लुरिसी रोग हो जाता है तो वह रोग वाले फेफड़े की तरफ लेट नहीं सकता। इसके साथ ही रोगी को तेज बुखार भी हो सकता है। रोगी को इस प्रकार के लक्षणों में बेलाडोना औषधि की 3, 30 या 200 शक्ति देनी चाहिए।


4. इपिकाक- बच्चे को छोटी उम्र में ही सांस की नली में सूजन आने के रोग के लक्षणों में हर समय खांसी होती रहती है, उसकी सांस सही तरह से नहीं आती, छाती हर समय घड़घड़ाती रहती है, उल्टी आने लगती है। रोगी अगर खांसता है या सांस लेता है तो दोनों ही अवस्थाओं में धड़धड़ की आवाज होती रहती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को इपिकाक औषधि की 3, 30 या 200 शक्ति का सेवन कराना चाहिए। यह औषधि रोगी के गले में जमे बलगम को भी निकाल देता है।


5. ऐन्टिम-टार्ट- रोगी की सांस की नली में सूजन आ जाने के रोग वाले लक्षणों में रोगी की छाती बलगम के मारे हर समय घड़घड़ाती रहती है लेकिन बलगम बहुत कम मात्रा में निकलता है। रोगी को रात में सोते समय इस प्रकार की खांसी होती है जैसे कि उसका दम घुट रहा हो और उसे खांसते-खांसते उठकर बैठना पड़ता है। रोगी की सांस की नलियों में बलगम भरा हुआ रहता है। इस प्रकार के लक्षणों में अगर रोगी को ऐन्टिम-टार्ट औषधि की 3X मात्रा या 30 या 200 शक्ति देना लाभकारी रहता है।


6. मर्क-सोल- रोगी की खांसी शाम के समय या रात को तेज हो जाती है। उसको ऐसा महसूस होता है जैसे कि उसकी छाती फट रही हो, रोगी को बहुत ज्यादा पसीना आता है और जितना ज्यादा पसीना आता रहता है उसकी तबीयत उतनी ही खराब होती रहती है। रोगी की जीभ हर समय गीली सी रहती है। रोगी के मुंह से लेकर छाती तक के हिस्से में दर्द होता रहता है। इस तरह के सांस की नली में सूजन आने के रोग के लक्षणों में रोगी को मर्क-सोल की 30 या 200 शक्तियां दी जा सकती है।


7. फॉसफोरस- सांस की नली में सूजन आने के रोग वाले लक्षणों में रोगी को बलगम पीले रंग का या खून के साथ आता है। यह बलगम इतना सख्त, खुश्क और चिपचिपा होता है कि खांसते-खांसते रोगी का पूरा शरीर कांपने लगता है, उसे ठण्डा पानी पीने की तेज इच्छा होती है। उसको थूक नमकीन सा या मीठा आता है। रोगी अगर आराम करता है तो उसे थोड़ी बहुत राहत मिलती है। इस प्रकार के लक्षणों के आधार पर रोगी को अगर फॉसफोरस औषधि की 30 शक्ति दी जाए तो उसे बहुत लाभ मिलता है।


8. सल्फर- अगर रोगी की सांस की नली की सूजन के रोग में रोगी को दी गई औषधियों से कोई खास लाभ नहीं होता तो दूसरी औषधियों को देने के साथ ही बीच-बीच में सल्फर औषधि की 30 शक्ति भी दी जा सकती है।


9. ट्युबर्क्युलीनम- सांस की नली की सूजन या फेफड़ों के दूसरे रोग में अक्सर चिकित्सक ट्युबर्क्युलीनम औषधि को सबसे पहले दे देते है क्योंकि उनके मुताबिक इस औषधि से ही रोगी को लाभ मिल जाता है। जिस तरह से सल्फर औषधि को दूसरी औषधियों के बीच-बीच में दे दिया जाता है वैसे ही इसको भी दे सकते है। लेकिन इन दोनों औषधियों में से सिर्फ एक का ही सेवन किया जा सकता है।


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